लेखनी कहानी -23-Aug-2022.. दैनिक प्रतियोगिता.. रिश्ते...
देखिए मुझे ये आपकी बहन का यहाँ ऐसे हर त्यौहार पर आना पसंद नहीं हैं...। आने के बाद मम्मी तो बिल्कुल पगला जाती हैं...। यहाँ हमारे खाने के लाले पड़े हुवे हैं और हर बार मम्मी कभी चावल कभी दाले कभी कपड़े कभी पुराने बर्तन उठा उठाकर उसको देतीं रहती हैं...। अगर वो गरीब घर से हैं तो हमारी भी तो सिमित आय हैं....। हम भी टाटा बिड़ला के खानदान के तो नहीं हैं...। आप मम्मी को समझा दो... वरना मुझे ही बोलना पड़ेगा... फिर बात बिगड़े तो मुझे मत कहना...।
हाँ हाँ बोल दूंगा.... आज त्यौहार का दिन तो शांति से जाने दो...।
हां त्यौहार तो आपकी बहन के लिए आता हैं जैसे... अरे जान तो मेरी जाती हैं ना... आपकी बहन के साथ तीन तीन शैतान भी तो आते हैं साथ में..... पूरा मेरा घर उथल पुथल करके जातें हैं...। अरे जब संभालने की औकात नही थीं तो पैदा ही क्यूँ किया ऐसे कर्म जलो को...।
बस करो वंशी..... (चंद्र अपने जूतों की लेस बांधते हुए बोला)
हां हां ठीक हैं... नहीं बोलतीं अभी कुछ मुझे भी कोई फालतू टाइम नही हैं.... लेकिन कहें देतीं हूँ आज भी अगर मम्मी ने घर लुटाया ना तो मैं फिर त्यौहार व्यौहार सब भूल जाऊंगी....। अरे राखी का त्यौहार हैं.... भाई बहन का दिन हैं... सौ दो सौ रुपये देकर चलता करो....चीजें उठाकर देने की कौनसी जरूरत हैं... खुद भी तो सिर्फ आधा किलो मिठाई ही लाती हैं ना...।
ठीक हैं बाबा.... अभी गुस्सा छोड़ो और जाकर तैयार हो जाओ... दीदी आतीं ही होंगी...।
कुछ ही देर में दरवाजे पर एक रिक्शा रुकी.. सविता अपने बच्चों के साथ उसमें से उतरी...। उसकी माँ ने सविता को गले से लगाकर सभी को भीतर ले आई...। चेहरे पर झूठी मुस्कान के साथ वंशी ने भी उसको गले से लगाया...। कुछ देर की साधारण बातचीत के बाद.. सविता ने चंद्र को राखी बांधी...। चंद्र ने जेब से दो सौ का नोट निकालकर कहा :- माफ़ करना दीदी इस बार हाथ थोड़ा तंग हैं... तुम तो जानती हो मैं नौकरीपेशा हूँ... खर्चे बढ़ते जा रहें हैं..।
सविता ने मुस्कुरा कर कहा :- अरे कोई बात नहीं चंद्र.... तु नही भी देता तो भी चलता... तु छोटा हैं ना मुझसे... और फिर तु मम्मी की जिम्मेदारी भी तो उठा रहा हैं ना... ये रुपये तु रख ले... मेरे लिए इतना ही काफी हैं...। (सविता नोट वापस करते हुए बोली)
अरे नहीं नहीं दीदी... ये तो आपका हक बनता हैं...।
ठीक हैं तो फिर मुझे सिर्फ एक पचास का नोट दे दे...। जब तु अच्छे से कमाने लगेगा तब मांग कर लूंगी...। पूरे हक़ से...।
चंद्र कुछ बोलता इससे पहले ही वंशी ने नोट लेकर कहा :- अब दीदी इतना कह रहीं हैं तो रख लिजिए..।
कुछ देर बाद सभी ने मिलकर खाना खाया...। शाम ढलने पर सविता सभी से विदा लेकर जाने लगी तो उसकी माँ ने एक बैग उसे देते हुए कहा :- बेटा इसमें बच्चों के लिए नमकीन और मिठाइयां हैं...और कुछ घर का सामान हैं..।
ये देख चंद्र बोला :- माँ... अभी हमारी इतनी कैपेसिटी नहीं रहीं हैं... दीदी को लेन देन थोड़ा कम किया करो...। हमारी भी हालत तो अच्छी नहीं हैं ना..। कुछ जिम्मेदारी बड़े भाई पर भी डालों.... हिस्सेदारी लेने के वक्त तो आए ही थें ना..।
बेटा तु तो उन दोनों का स्वभाव जानता हैं ना...। घर में क्लेश करवा देंगे... और फिर बहन की हालत भी तु जानता हैं...।
सविता ये सब सुनकर अपनी माँ को घर सामान का थैला वापस देते हुए बोली :- माँ... इसे वापस रखो... पहले इस घर के लिए तुम्हारी जिम्मेदारी बनतीं हैं...। अच्छा अब मैं चलतीं हूँ... ।
सविता घर से बाहर अभी आई ही थीं की सामने से बाइक पर उसका बड़ा भाई और भाभी आए...।
अरे भईया आप.... मैं अभी आपके यहाँ ही आ रहीं थीं..।
अरे छुटकी हमें किसी जरूरी काम से बाहर जाना था तो सोचा यही आकर तुमसे राखी बंधवा लूं..।
ये देख वंशी मन ही मन बड़बड़ाने लगी..... हां... यहाँ तो मैने होटल खोल रखी हैं ना... जिसको देखो मुंह उठाकर चला आता हैं... सब समझतीं हूँ मैं इनके नाटक खुद की पत्नी को कुछ करना ना पड़े इसलिए टपक पड़ते हैं यहाँ हर बार... बहाने बनाकर... चल वंशी स्वागत करो इनका.... ओर कर भी क्या सकतीं हैं तु...।
वंशी फिर से चेहरे पर झूठी मुस्कान लिए अपने जेठ और जेठानी की आवभगत में लग गई....।
सविता ने बड़े भाई को राखी बांधी तो उसने पांच सौ का नोट नेक में दिया...। कुछ देर चाय नाश्ता करने के बाद वे वहाँ से चल दिए..। उनके जातें ही सविता भी अपने घर वापस चल दी...।
दिन महीने साल ऐसे ही बितते गए...। घर में वंशी के कहने पर चंद्र ने सविता के आने जाने पर और देने पर रोक लगा दी थीं....वो अब सिर्फ रक्षाबंधन के त्यौहार पर ही आतीं थीं...और लेन देन भी बंद कर दिया था...।
कुछ समय बाद सविता को उसकी माँ का फोन आया :- हैलो बेटी... कुन्नु (चंद्र का बेटा) हास्पिटल में हैं... उसका एक्सीडेंट हो गया हैं... विजु (चंद्र का बड़ा भाई)भी यहाँ नहीं हैं ... चंद्र बहुत परेशान हैं तु जल्दी आ जा....।
सविता फोन रखते ही तुरंत हास्पिटल पहुंची...। उसे देख चंद्र और वंशी गुस्से से लाल हो गए....।
अब आप यहाँ क्यूँ आए हो दीदी... मेहरवानी करो.... अभी मैं बहुत परेशान हूँ....जाओ यहाँ से...। अभी मेरे पास कुछ नहीं हैं देने को...।
सविता कुछ बोलती इससे पहले वंशी भी उसे खरी खोटी सुनाने लगी...।
सविता खामोश खड़ी सब सुनती रहीं...। कुछ ही मिनटों में डाक्टर वहाँ आए और बोले :- देखिए.... सिचुएशन बहुत गंभीर हैं... हमें अभी का अभी आपरेशन करना पड़ेगा.... आप जल्दी से पचास हजार काउंटर पर जमा करवा दिजिए...।
पचास हजार.... लेकिन डाक्टर....
डाक्टर बात काटते हुए :- देखिए.... बहस करके आप बच्चे की जिंदगी खतरे में डालेंगे.... बेहतर हैं आप रुपयों का इंतजाम करें..।
ऐसा कहकर डाक्टर वहाँ से चले गए...।
चंद्र अपने सिर पर हाथ रखकर जमीन पर गिर पड़ा और रोने बिलखने लगा.... तभी सविता उसके पास गई और अपने साथ लाए पर्स में से दो सोने के कंगन निकालकर चंद्र को देते हुए बोली :- चंद्र.... हिम्मत रख.... कुछ नहीं होगा.... ले ये कंगन बेचकर पैसे ले आ...। मम्मी का फोन आया तभी मैं घर से लेती हुई आई थीं....। ये मेरी शादी पर पापा ने दिए थे...। मैने बुरे वक्त के लिए संभाल कर रखे थे.... कुन्नु.... मेरा भी तो बेटा हैं ना.... जा जल्दी कर...और ये क्या हाल बना रखा हैं खुद का.... देख तेरे बालों में भी सफेदी आ रहीं हैं.... थोड़ा ध्यान रखा कर अपना...।
चंद्र और वंशी को समझ ही नहीं आया की वो क्या कहें...। चंद्र ने अपनी बहन की तरफ़ नज़र डाली तो पैरों में सिलाई लगी हुई चप्पल.. गोऱ किया तो कंधे पर वही दुप्पटा जो हर बार होता हैं..।
चंद्र उठा और सविता को गले से लगा लिया और उनसे माफी मांगने लगा...।
माफी किस बात की चंद्र.... वक्त पर अपने ही तो साथ होते हैं ना... तु अभी जल्दी जा ओर पैसे ले आ...।
चंद्र आंसू पोंछते हुवे वहाँ से चला गया...। वंशी भी सविता से गले लगकर माफी मांग रहीं थीं..।
पैसों का इंतजाम हुआ... इलाज हुआ... सब कुछ पहले जैसा नार्मल हो गया..। चंद्र और वंशी के स्वभाव में बहुत परिवर्तन आ गया था..। चंद्र अब खुद हर त्यौहार पर सविता को लेने जाता था...। दोनों के पास पैसा भले ही कम था पर अब दिलों में गुस्से और नफरत की जगह सिर्फ प्यार था...। ये सब देख सबसे ज्यादा सविता की मां खुश थीं... ।
कुछ वक्त बिता लिया करो बहनों के साथ.... ये हिस्सा नहीं सिर्फ तुम्हारा प्यार चाहतीं हैं....। 🙏🙏
Gunjan Kamal
24-Aug-2022 08:30 PM
बिल्कुल सही कहा आपने मैम
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shweta soni
24-Aug-2022 12:47 PM
Bahut achhi rachana
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Chetna swrnkar
24-Aug-2022 11:57 AM
Nice
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